उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री और राज्य स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख राज्य आंदोलनकारी फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट का निधन हो गया है। शाम 4 बजकर 20 मिनट पर उन्होंने अपने हरिद्वार स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। पिछले दस दिनों से वह देहरादून के इंद्रेश अस्पताल में भर्ती थे।
यूकेडी के पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी के मुताबिक दिवाकर को न्यूरो की समस्या थी और उनका ब्रेन काम करना बंद कर चुका था। आगे स्वास्थ्य जटिलताएं बढ़ीं और एक दुर्घटना भी हुई, जिसके कारण उनकी हालत और कमजोर हो गई।
इंद्रेश हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने उनकी हालत में सुधार लाने की काफी कोशिश की लेकिन जब कोई सुधार नहीं दिखा तो बीते कल उन्होंने परिवार से भट्ट को घर ले जाने की सलाह दी, जिसके बाद बाद उनके परिजन उन्हें घर ले गए थे। परिजनों के मुताबिक कल यानी 26 नवंबर को सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार हरिद्वार के खड़खड़ी में किया जाएगा।
राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव प्रसाद सेमवाल ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है।
भाजपा की सरकार में भट्ट को मिला था मंत्री पद
दिवाकर भट्ट का चुनावी सफर बेहद सक्रिय और उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने 2002 में देवप्रयाग विधानसभा से UKD के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। इसके बाद 2007 में उन्होंने UKD के टिकट पर फिर से चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत हासिल की, जिससे उनका क्षेत्रीय राजनीतिक दबदबा मजबूत हुआ।
2012 में उन्होंने भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए, और 2017 में भाजपा से टिकट नहीं मिला तो वो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे लेकिन फिर उन्हें हार मिली। 2022 में उन्होंने फिर से UKD का दामन थामा लेकिन विनोद कंडारी (BJP) से मात्र 2,588 वोट से हार गए थे।
हरिद्वार स्थित उनके घर पर रिश्तेदार पहुंचने शुरू हो गए हैं।
पूर्व विधायक ने जताया भट्ट के निधन पर दुख यूकेडी के पूर्व अध्यक्ष और द्वाराहाट के पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने दिवाकर भट्ट के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि दिवाकर भट्ट का योगदान उत्तराखंड आंदोलन और क्षेत्रीय राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।
त्रिपाठी ने बताया कि यूकेडी के टिकट पर जीतने के बाद दिवाकर भट्ट को मंत्री बनने का मौका मिला। उस समय भाजपा के पास 32 सीटें थीं, जिसके कारण उन्हें राजस्व और शहरी विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। बाद में खंडूरी सरकार में भी उन्हें यही विभाग मिला था।
उनके निधन से संपूर्ण उत्तराखंड में शोक की लहर है।









