हरिद्वार स्थित प्रसिद्ध मां चंडी देवी मंदिर के प्रबंधन में की गई रिसीवर नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से जवाब तलब किया है। यह निर्देश मंदिर के परंपरागत सेवायत (पुजारी) द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें उन्होंने इस नियुक्ति को परंपराओं के विरुद्ध बताया है।
हरिद्वार का मां चंडी देवी मंदिर न केवल एक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी प्राचीन धार्मिक परंपराएं और स्थानीय पुजारियों की भूमिका सदियों से चली आ रही व्यवस्था का हिस्सा रही हैं।
हाल ही में बद्री-केदार मंदिर समिति (BKTC) ने मंदिर की व्यवस्था देखने के लिए एक रिसीवर नियुक्त किया था। इस पर मंदिर के सेवायतों ने कड़ा विरोध दर्ज करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सेवायतों की याचिका में कहा गया कि मंदिर का प्रबंधन सदियों से उनके पूर्वजों और अब उनके द्वारा किया जा रहा है, और राज्य सरकार या BKTC को इस व्यवस्था में दखल देने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि मंदिरों की पारंपरिक व्यवस्थाएं और धार्मिक स्वतंत्रता संवैधानिक अधिकार के अंतर्गत आती हैं, इसलिए इस मामले में राज्य सरकार का पक्ष जानना आवश्यक है।
सेवायतों ने यह भी आरोप लगाया है कि BKTC द्वारा की गई नियुक्ति एकतरफा, असंवैधानिक और मंदिर की धार्मिक भावनाओं के विपरीत है। उन्होंने मांग की है कि इस निर्णय को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई अगस्त के मध्य में संभावित है, जिसमें राज्य सरकार का पक्ष सामने आने के बाद अंतिम निर्देश दिए जा सकते हैं।
यह मामला हाल के उन कई विवादों में से एक है, जिसमें सरकारी हस्तक्षेप बनाम पारंपरिक प्रबंधन की बहस उभरी है। इससे पहले भी कुछ मंदिरों में ऐसे विवाद सामने आ चुके हैं, जहाँ परंपरागत सेवायतों और राज्य की धार्मिक संस्थाओं के बीच अधिकारों को लेकर टकराव हुआ है।