उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के यमुनोत्री राष्ट्रीय राज्य मार्ग की सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में फंसे 41 श्रमिको को निकालने के अभियान का आज 28 नवंबर को 17 वां दिन है। इन्हें निकालने के लिए पहुंचाई जाने वाली 80 सेंटीमीटर व्यास की आखिरी 10 मीटर की पाइप बिछाने का काम पिछले चार दिनों से नहीं हो पाया है, क्योंकि ड्रिल करने वाली ऑगर मशीन में टूट कर अंदर ही फंस गई थी जिससे 48 मीटर तक ही ड्रिलिंग हो पाई है।
विकल्प के तौर पर सेना के जवान पहाड़ी के ऊपर से 30 मीटर तक वर्टिकल ड्रिलिंग कर चुके हैं, लेकिन वहां भी पानी निकलने के कारण काम बंद हो गया है। भारी भरकम मशीनों के फेल हो जाने के बाद अब मिशन जिंदगी के तहत 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स को बुलाया गया है।
हाथ से चूहे की तरह खुदाई में एक्सपर्ट है यह टीम
आपके दिमाग में यह नाम सुनते ही कौंध रहा होगा कि आखिर ये रैट माइनर्स हैं कौन ? तो इनके नाम से ही पता चलता है कि यह टीम चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करने वाले विशेषज्ञों की एक टीम है।अब इनके भरोसे ही सुरंग के 41 मजदूरों की जिंदगी है। 48 मीटर से की खुदाई अब यह टीम हाथ से करेंगी। इस काम के लिए इनके पास हथौड़ा, सब्बल और खुदाई करने वाले अन्य पारंपरिक टूल्स हैं। 6 रैट माइनर्स की टीम यहां पहुंच गई है जिनके पास दिल्ली और अहमदाबाद में इस तरह का काम का अनुभव है।
दो-दो माइनर्स करेंगें खुदाई
सिलक्यारा सुरंग में अपने काम करने के तरीके बारे में इन्होंने बताया कि पहले दो लोग पाइपलाइन में जाएंगे, एक आगे का रास्ता बनाएगा और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरेगा और बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से मलबे वाली ट्रॉली को रस्सी के सहारे बाहर खींचेंगे। एक बार में 6 से 7 किलो मलबा बाहर लाएंगे। जब अंदर खुदाई करने के लिए गए लोग थक जाएंगे तो बाहर से दो लोग अंदर जाएंगे और वे दोनों बाहर आ जाएंगे।इस तरह बारी-बारी से बाकी के 10 मीटर का खुदाई का काम होगा। इन लोगों ने उम्मीद जताते हुए कहा है,कि “अंदर फंसे लोग भी श्रमिक हैं और हम भी आज हम उन्हें बचाएंगे तो कल अगर हम कहीं फंसे तो ये लोग बचाएंगे.”
छोटी जगह में है खुदाई का अनुभव
रैट माइनिंग तकनीकी को छोटी जगह में खुदाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जहां मशीनों का काम करना संभव नहीं होता तो वहां रैट माइनिंग तकनीकी मददगार साबित होती है। हालांकि इस तकनीक का उपयोग अक्सर अवैध तरीके से कोयला खदान के लिए किया जाता है क्योंकि मशीनों और अन्य उपकरणों की मौजूदगी से लोगों और प्रशासन की नजर आसानी से पड़ सकती है और रैट माइनिंग में प्रशासन को भनक तक नहीं लगती है। इसके अलावा यह बहुत तेज
प्रक्रिया है और इसकी सफलता की उम्मीद रहती है। इसलिए उत्तराखंड की सुरंग में भी यह टेक्निक उम्मीद की किरण बनेगी,ऐसी आशा है।