कहां तो हज़ारों युवा एक-एक नौकरी के लिए फॉर्म भरते-भरते और लाइनें लगाते-लगाते थक जाते हैं, फिर भी हाथ खाली रह जाता है। और कहां आगरा का एक युवक, जो एक ही नाम से छह-छह जिलों में सरकारी नौकरी कर रहा था। आधार नंबरों की हेराफेरी से खेला गया यह फर्जीवाड़ा अब पुलिस जांच के घेरे में है।
सरकारी भर्ती से जुड़ा एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। आगरा के शाहगंज क्षेत्र निवासी बताए जा रहे अर्पित सिंह पुत्र अनिल कुमार सिंह के नाम का इस्तेमाल कर अलग-अलग जिलों में अलग-अलग आधार नंबरों से सरकारी नौकरी करने का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है।
इस खुलासे के बाद बलरामपुर, फर्रुखाबाद, रामपुर, बांदा, अमरोहा और शामली जिलों में पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
हर जगह नाम-पता एक, लेकिन आधार नंबर अलग
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हर जिले में आरोपी ने नाम, पिता का नाम और पता तो एक ही दिया, लेकिन आधार नंबर हर जगह अलग-अलग प्रस्तुत किए। यही गड़बड़ी पूरे मामले का भंडाफोड़ करने का कारण बनी।
जिलेवार इस प्रकार है मामला
अमरोहा में आरोपी ने खुद को नगला खुबानी, कुरावली, मैनपुरी का निवासी बताते हुए आधार संख्या 339807337433 प्रस्तुत की।
शामली में आगरा निवासी बताकर आवेदन किया, मगर आधार नंबर अप्रमाणित पाया गया।
बलरामपुर में आधार संख्या 525449162718 का उपयोग कर शाहगंज, आगरा निवासी बताया।
फर्रुखाबाद में आधार संख्या 500807799459 प्रस्तुत कर वहीं का पता दिया।
रामपुर में आधार संख्या 8970277715487 पेश किया।
बांदा में आधार संख्या 496822158342 के आधार पर मामला दर्ज हुआ।
आरोपी के पिता अनिल कुमार सिंह ने बताया कि उनके बेटे की पहली नौकरी 2016 में जिला हाथरस में लगी थी। उसने गाजियाबाद से डिप्लोमा किया और बाद में नौकरी के लिए आवेदन किया। उन्होंने कहा कि “इस फर्जीवाड़े की जानकारी हमें अखबार में खबर छपने के बाद हुई। हम निष्पक्ष जांच चाहते हैं।”
बड़ा नेटवर्क होने की आशंका
पुलिस का मानना है कि आरोपी अकेला नहीं है, बल्कि एक संगठित गिरोह इस खेल को अंजाम दे रहा था। कई जिलों में नौकरी पाना और वर्षों तक पहचान छिपाए रखना इस बात की ओर इशारा करता है कि सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर लंबे समय से सरकारी भर्तियों और सुविधाओं का लाभ उठाया जाता रहा।
यह मामला सरकारी भर्ती और पहचान सत्यापन प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर करता है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह खेल इतने सालों तक कैसे चलता रहा और भर्ती एजेंसियां और विभागीय जांच प्रणाली इतनी बड़ी गड़बड़ी से अनजान कैसे रहे?