प्रदेश के लाखों किसान इन दिनों जंगली जानवरों के आतंक से जूझ रहे हैं।
पर्वतीय अंचलों में खेती करना पहले ही कठिन है। पथरीली जमीन, कम पानी और बरसात पर फसलें निर्भर हैं। ऊपर से अब जंगली जानवरों का कहर किसानों की जिंदगी और भी मुश्किल बना रहा है। क्षेत्र में बंदर, लंगूर और सुअरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि लोग खेतों में सब्जियां उगाने से भी कतराने लगे हैं।
पहाड़ की पहचान मानी जाने वाली गहत, गुरुंस, काले भट्ट, सोयाबीन, रैंस, कुणी और मादिरा जैसी फसलें अब खेतों में नजर ही नहीं आतीं। जो थोड़ी-बहुत पैदा होती हैं उसे भी जंगली जानवर चटकर जाते हैं। रावल गांव, हनेरा, खतेड़ा, लाली, कुंजनपुर, कोठरा और भाटगांव जैसे गांवों में हाल यह है कि कभी जहां क्यारियां हरी-भरी रहती थीं वहां अब सूनी जमीन पड़ी है।
क्षेत्र के किसान बताते हैं कि मेहनत करने के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आता। गांव के किसान कहते हैं कि कई साल हो गए हमने सब्जी उगाना छोड़ दिया। आधी रात को सुअर खेत खोद डालते हैं। दिन में बंदर क्यारियां उजाड़ देते हैं। मेहनत और लागत सब बेकार जाती है। इस बार तो हालात और खराब रहे। मक्का पूरी तरह बर्बाद हो गया। धान और मडुवा की फसल भी रौंदी गई।
ग्रामीणों का दर्द है कि प्राकृतिक आपदाएं, पलायन और मौसम की मार से खेती पहले ही संकट में है। दूसरी ओर जंगली जानवरों ने किसानों की आखिरी उम्मीद भी तोड़ दी है। जिन खेतों से परिवार की रोजी-रोटी चलती थी वे अब वीरान होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद वन विभाग कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा। न तो फसल की सुरक्षा के लिए बाड़बंदी की व्यवस्था है और ना ही जंगली जानवरों को रोकने के उपाय। किसानों की कसक यही है कि उनकी मेहनत का कोई मोल नहीं रह गया।