20 करोड़ रुपये के बीज प्रमाणीकरण और टैग घपले की फाइल का जिन्न अब न सिर्फ बाहर निकलेगा, बल्कि घपले में शामिल अधिकारियों को भी लपेटे में लेगा। गायब हुई फाइल न सिर्फ जैसे-तैसे रीक्रिएट (फिर से तैयार) करा ली गई है, बल्कि इस पर अब एसआईटी जांच भी बैठा दी गई है। यह जानकारी गायब कराई गई फाइल से जुड़ी सूचनाओं को लेकर सूचना आयोग में दायर अपील की सुनवाई में स्वयं शासन के अधिकारियों ने कही। राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की सुनवाई में सामने आई इस बात के बाद अब शासन के तमाम अधिकारी बेचैन दिख रहे हैं।
बीज प्रमाणीकरण की फाइल सचिवालय से गायब होने की बात पहली बार अगस्त 2023 में तब सामने आई थी, जब इससे जुड़ी सूचनाओं से परहेज किया गया और मामला अपील के रूप में सूचना आयोग पहुंचा। यह मामला इसीलिए भी अधिक गंभीर माना गया, क्योंकि फाइल आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल भेजे गए रिटायर्ड आइएएस डा राम विलास यादव के कार्यकाल में उनके ही कार्यालय से गायब हुई थी। फाइल से जुड़ी सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश के मधवापुर बैरहना (प्रयागराज) निवासी हरिशंकर पांडेय ने लोक सूचना अधिकारी/अनुभाग अधिकारी कृषि एवं विपणन अनुभाग में आरटीआइ आवेदन दाखिल किया था। तय समय के भीतर सूचना न मिलने पर मामला सूचना आयोग पहुंचा।
अपील पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस जारी किया तो पता चला कि बीज प्रमाणीकरण अभिकरण में बीज बिक्री एवं टैग की मूल पत्रावली 14 अक्टूबर 2020 को अंतिम बार तत्कालीन ऐप सचिव कृषि डा राम विलास यादव को भेजी गई थी। इसके बाद फाइल किसी को नहीं मिली। फाइल गायब होने के बाद अधिकारियों ने क्या किया, जब आयोग ने यह पूछा तो टका सा जवाब दिया गया कि 04 जुलाई 2022 को इसकी सूचना पुलिस को दी गई थी। हालांकि, 16 अगस्त 2023 को यह कहते हुए पुलिस ने जांच बंद कर दी कि फाइल के किसी भी स्तर पर होने के प्रमाण नहीं मिले हैं। सूचना आयोग ने जब सूचनाओं तक पहुंच के लिए फाइल की रीक्रिएट (दोबारा तैयार करना) कराने का दबाव बनाया तो फाइल को दोबारा तैयार करने को समिति गठित कर दी गई।
गंभीर घपला उजागर होने पर तैयार करवानी पड़ी फाइल, सूचना आयोग का अहम रोल
सूचना आयोग में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि बीज प्रमाणीकरण में घपले को लेकर वर्ष 2017 में तत्कालीन ऐप सचिव डा आशीष श्रीवास्तव ने जांच की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजों की बिक्री और टैग मामले में फौरी तौर पर पर्दा डालने की कार्यवाही की गई है, जबकि जबकि बीजों की बिक्री और टैगिंग में घोर अनियमितता बरती गई है। इसी क्रम में विस्तृत जांच के लिए आयुक्त कुमाऊं मंडल को जांच अधिकारी नामित किया गया था। जांच में यह उल्लेख किया गया था कि प्रकरण की सत्यता के लिए विभागीय या अभिलेखीय जांच पर्याप्त नहीं है। क्योंकि, घपले का विस्तार उत्तर प्रदेश में भी है। ऐसे में पुलिस या एसआइटी से जांच कराया जाना उपयुक्त होगा।
जांच पर निर्णय लेने से पहले ही फाइल हुई गायब
इससे पहले कि बीज घोटाले की फाइल पर जांच की जाती, तब तक उसे ही गायब करवा दिया गया। यह मामला भी डंप हो जाता यदि सूचना आयोग में अपील न की जाती। हालांकि, अब स्वयं अधिकारियों ने सूचना आयोग में एसआइटी गठित कर दिए जाने की सूचना दी है। जिस पर आयोग ने इसकी जानकारी लिखित में उपलब्ध कराने को कहा है। क्योंकि, अभी जांच की जानकारी आधिकारिक रूप से बाहर नहीं आ सकी है।
वर्ष 2009-10 में कृषि विभाग ने दोगुनी मात्रा में बाजार मूल्य से कहीं ज्यादा पर ढेंचा बीज खरीदा था। सरकार से अनुमति लिए बिना ही कृषि निदेशालय ने दून, हरिद्वार, यूएसनगर और नैनीताल के सीएओ को बीज खरीदने के आदेश दिए गए। त्रिपाठी जांच आयोग की रिपेार्ट के अनुसार बीज खरीद से पहले लिए जाने वाले 130 नमूनों की जगह केवल आठ नमूने ही लिए गए। 14 हजार कुंतल के बजाए केवल 4400 कुंतल की ही सप्लाई हुई थी। सभी किसानों तक बीज नहीं पहुंचा। बिना सत्यापन कराए ही 1.40 करोड़ रुपये का भुगतान भी करा दिया गया। आयेाग की रिपोर्ट में कई बड़े लोगों को जिम्मेदार माना गया था। लेकिन वर्ष 2017 में विधानसभा में पेश एक्शन टेकन रिपोर्ट में ज्यादातर को क्लीन चिट दे दी गई।
मामले को लेकर 20 करोड रुपए की फाइल गायब कर दी गई है, जिसकी जांच चल रही है।