लाख कोशिशों के बाद भी उत्तराखंड के स्कूलों के हाल-बेहाल हैं। हालात यहां तक बिगड़ गये है कि जूनियर हाईस्कूलों में सामाजिक विषय के टीचर बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ा रहे हैं। यह स्थिति उन स्कूलों में खासकर एकल शिक्षक वाले जूनियर स्कूलों में ज्यादा है। इस तरह के स्कूल प्रदेश में गिने चुने नहीं बल्कि 170 स्कूल हैं। तीन हजार प्राथमिक विद्यालयों में एक से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे एक ही कक्षा में पढ़ रहे हैं।
शिक्षा विभाग का यह कोई मिक्स लर्निंग का प्रयोग नहीं है बल्कि स्कूलों में घट रही छात्र संख्या और शिक्षकों की कमी की वजह से यह समस्या बनी है। राज्य सेक्टर के जूनियर हाईस्कूलों में मानक के अनुसार चार सहायक अध्यापक और एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। जबकि सर्व शिक्षा के जूनियर हाई स्कूलों में तीन सहायक अध्यापक के पद हैं, लेकिन स्कूलों में मानक के अनुसार शिक्षक न होने से 170 एकल शिक्षकों वाले इन स्कूलों में एक शिक्षक को 21 विषयों को पढ़ाना पड़ रहा है।
देहरादून जिले में भी इस तरह के कुछ स्कूल हैं। जिले के जूनियर हाईस्कूल रावना विकासखंड चकराता में पिछले तीन साल से एकमात्र शिक्षक है। सामाजिक विषय के टीचर प्रवीन चौधरी को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, संस्कृत व कला सभी विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं। यही स्थिति इसी ब्लॉक के जूनियर हाईस्कूल सिंहऊ घणता की है।स्कूल एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं ।स्कूल के एकल शिक्षक संजीव दास का भी वर्ष 2016 में चकराता ब्लॉक से विकासनगर ब्लॉक के मदरसू स्कूल में तबादले का आदेश हुआ था, परंतु रिलीवर न मिलने की वजह से शिक्षक नई तैनाती पर नहीं जा पाए हैं। राजकीय प्राथमिक विद्यालय मनटाड के शिक्षक मंगल के मुताबिक स्कूल में मात्र सात छात्र-छात्राएं हैं। शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार देहरादून जिले में इस तरह के 72 स्कूल ऐसे हैं जहां कम बच्चे होने की वजह से कक्षा एक से पांचवीं तक के सभी छात्र-छात्राएं एक ही कक्षा में पढ़ते हैं।