उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने लगभग 14 साल पुराने करोड़ों रुपए के टैक्सी बिल घोटाले में सख्त रुख अपनाते हुए दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
सरकारी खजाने से टैक्सी के फर्जी बिल के जरिए रुपए निकालने के मामले में आरोपी टूर ऑपरेटर्स की चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने यह आदेश जारी किए हैं।
दोनों आरोपी दूर ऑपरेटर्स का कहना है कि उन्होंने कोई फर्जी बिल नहीं लगाया है। उनको मुख्यमंत्री कार्यालय के सत्यापित बिलों पर ही भुगतान किया गया है।
न्यायमूर्ति शरद कुमार की एकल पीठ ने सरकार से स्पष्ट शब्दों में पूछा है कि टैक्सी बिल घोटाले में मंत्री, अधिकारी व सलिप्त अन्य लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर इस बारे में शपथ पत्र देकर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर सरकार शपथपत्र दाखिल नहीं करती है तो गृह सचिव समेत सभी आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कराई जाए। कोर्ट ने कहा कि टैक्सी बिलों का सत्यापन मुख्यमंत्री दफ्तर से किया गया था। तब तत्कालीन अधिकारियों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी।
ज्योति काला द्वारा इस मामले में दायर याचिका में कहा गया कि 2009 व 2013 में सीएम फ्लीट में बाहर से टैक्सी मंगाकर लगभग डेढ़ करोड़ के बिल बनाकर उनका पैसा निकाल लिया गया। 2015 में घोटाले का पता चलने के बाद तत्कालीन सीएमओ ने देहरादून व ऋषिकेश में FIR दर्ज कराई और इस मामले में काला टूर ऑपरेटर व उनियाल टूर ऑपरेटर को मुख्य आरोपी बनाया गया।
उस समय काला टूर एंड ट्रेवलर्स को 22 लाख और उनियाल टूर एंड ट्रेवलर्स को 5 लाख का भुगतान किया गया।पुलिस ने इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी।हाईकोर्ट में इन दोनों टूर ऑपरेटरों ने कहा जिन बिलों का भुगतान उन्होंने लिया है वह मुख्यमंत्री कार्यालय से सत्यापित किए गए थे। उन्होंने कोई फर्जी बिल पेश नहीं किया है।इस मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े अधिकारीयों ,स्टाफ व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं। फर्जी टैक्सी बिल मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री के स्टाफ से जुड़े लोगों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है। इस मामले में 10 अधिकारियों को चार्जशीट मिली थी और सचिव की हैंडराइटिंग फर्जी बिलों से मिली थी।
चर्चित टैक्सी बिल घोटाले में स्वास्थ्य विभाग के दस अधिकारियों को भी चार्जशीट दी गई है। स्वास्थ्य विभाग में 2009 से 2013 तक मुख्यमंत्रियों के टूर के नाम पर टैक्सी बिलों का लगभग पौने दो करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
जांच में पाया गया कि अधिकारियों द्वारा ट्रैवल एजेंसियों के साथ मिलकर गलत तरीके से भुगतान किया गया था। इस मामले में कोषागार, शासन और स्वास्थ्य महानिदेशालय व सीएमओ कार्यालयों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी।
राज्य के कई थानों में टैक्सी बिल घोटाले को लेकर मुकदमे दर्ज हैं। दिलचस्प बात यह है कि
स्वास्थ्य विभाग के अफसर इस फर्जीवाड़े का ठीकरा तत्कालीन मुख्यमंत्रियों के निजी सचिवों पर थोपते रहे और निजी सचिव बिलों को फर्जी बताते रहे।
पुलिस की जांच में पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के एक निजी सचिव की हैंडराइटिंग फर्जी बिलों से मेल खाती पायी गई थी। मगर ऊंची पहुंच के चलते उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले में शीघ्रतापूर्ण कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग ने दस अधिकारियों जिनमें राज्य के कई जिलों के चिकित्सा अधिकारियों के भी नाम है,को चार्जशीट जारी की है।
चार्जसीट पाने वाले अधिकारियों के नाम:-
डॉ. आरएस असवाल, डॉ. एमपी अग्रवाल, डॉ. दीपा शर्मा, डॉ. मीनू, डॉ. वीके गैरोला, डॉ. एसडी सकलानी, डॉ. राकेश सिन्हा, डॉ. जीसी नौटियाल, डॉ. आरके पंत और डॉ. वाईएस राणा शामिल हैं। इसी क्रम में सचिवालय प्रशासन की ओर से की जाने वाली करवाई का अभी इंतजार है।
टैक्सी बिल घोटाले की स्वास्थ्य विभाग ने जांच कराई थी, जिसमें विभाग के 12 अधिकारीयों को दोषी पाया गया था। महानिदेशक स्वास्थ्य ने इस मामले की गहन जांच का आग्रह किया था। शासन ने यह जांच अपर सचिव आशीष जोशी से इसकी जांच करवाई थी। उन्होंने जांच की आधी अधूरी रिपोर्ट शासन को सौंप दी थी। जिसके बाद में संयुक्त सचिव आरआर सिंह ने गंभीरता से जांच की और स्वास्थ्य विभाग के 12 अधिकारीयों और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के पांच निजी सचिव को दोषी ठहराया और मामले की सीबीसीआईडी जांच की जरूरत बताई थी।
परंतु गृह विभाग ने इससे इंकार कर दिया और इसी रिपोर्ट के आधार पर दस लोगों को चार्जशीट जारी कर दी गई है। दो अन्य आरोपी डॉ. गुरपाल सिंह और डॉ. हटवाल की मौत हो चुकी है।
पूर्व मुख्यमंत्री के निजी सचिव ने जिस टैक्सी बिल में फर्जी हस्ताक्षर किए हैं। वह नंबर टैक्सी का ना होकर एक स्कूटर का निकला था। आरटीओ ऑफिस से 2017 में कराए गए सत्यापन में यह खुलासा हुआ था।