उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों देहरादून, मसूरी, ऋषिकेश,हरिद्वार सहित अन्य स्थानों में अनियंत्रित पर्यटक से संबंधित जनहित याचिका की मंगलवार को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर पर्यावरण और वन मंत्रालय की ओर से 1989 में जारी की गयी अधिसूचना के तहत पर्यटन योजना तैयार करने और केंद्र सरकार से अनुमोदित कराने में वह विफल क्यों रही है। कोर्ट ने अगली सुनवाई में राज्य पर्यटन सचिव को तलब करते हुए दून घाटी क्षेत्र में बिगड़ती पर्यटन स्थिति और व्यवस्था के चरमराने पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि अगली सुनवाई 3 हफ्ते बाद होगी।
याचिकाकर्ता की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन शांति व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने सुनवाई की। खंडपीठ ने अपनी नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से पूछा कि 34 साल बाद भी उद्योग और खनन पर प्रतिबंध लगाने वाली महत्वपूर्ण अधिसूचना के प्रावधान का पालन कराने में वह क्यों विफल रही। याचिकाकर्ता आशीष ने कहा कि 1989 में जारी दून घाटी की अधिसूचना में पूरे क्षेत्र के लिए मास्टर प्लान तैयार करने के निर्देश भी शामिल है। इस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि इन क्षेत्रों में कितने पर्यटक आ रहे है। सरकार के पास कितने होटल है, कितने और बनने बाकी हैं। इनके उपयोग हेतु पानी का प्रबंध कहां से किया जा रहा है। यहां, यह भी बता दें की दून घाटी अधिसूचना किसी क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने वाली देश की पहली अधिसूचना थी।