उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के गठन को 20 साल का वक्त बीत गया है।लेकिन हैरानी की बात यह है कि अभी तक वक्फ बोर्ड की संपत्तियां कहां-कहां है उन्हें इसकी जानकारियां उपलब्ध नहीं है, बावजूद इसके वफ्फ बोर्ड प्रदेश के तमाम हिस्सों में अपने संपत्तियों के होने का दावा करता है. ऐसे में वक्फ बोर्ड किस आधार पर संपत्ति अपनी बताता है, क्या पैमाना होता है, कितनी संपत्ति को वो अपनी मानता है, वक्फ बोर्ड कैसे अपने नाम कर लेता है संपत्ति, क्या है पैमाना, कौन देता है किसके नाम पर होती है? इन सभी मुद्दों को लेकर रिपोर्ट देश के किसी न किसी हिस्से में उठती रहती है। वक्फ बोर्ड से जुड़ा संपत्तियों का मामला सामने आता रहा है।देश के सबसे बड़ा मुद्दा उत्तरप्रदेश में राम मंदिर विवाद रहा,इसके अलावा यूपी में ज्ञानवापी विवाद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि विवाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट विवाद के साथ ही तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई गांव में 1500 साल पुराने मंदिर की जमीन का विवाद समेत समय- समय पर देश भर में ऐसे तमाम मामले सामने आते रहे हैं. यही नहीं, पिछले साल यूपी वक्फ बोर्ड यूपी में तमाम जमीनों पर अपना दावा ठोक रहा था, जिसे देखते हुए योगी सरकार में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के जांच के आदेश दे दिए थे। कुल मिलाकर देश के तमाम जगहों में समय-समय पर इस तरह के विवाद उठते रहे है।
वक्फ एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है कि वो संपत्तियां जो अल्लाह के नाम पर दान दी गई हों. हालांकि, पैसे और संपत्ति का वक्फ हो सकता है, जिसका इस्तेमाल धार्मिक कार्यों के साथ ही गरीबों की भलाई के लिए किया जा सके. इसके अलावा अगर किसी संपत्ति का इस्तेमाल इस्लाम धर्म के काम लिए लंबे समय तक किया जाए तो उस संपत्ति को वक्फ बोर्ड की भी माना जा सकता है।इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को वक्फ बोर्ड को दान कर देता है तो उस संपत्ति पर व्यक्ति की मालिकाना हक हमेशा के लिए खत्म हो जाता है, कुल मिलाकर संपत्तियों और पैसों के देख-रेख के लिए ही वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था। लेकिन 1995 तक इस बोर्ड को इतने असीमित अधिकार दे दिए गए जो आज कहीं न कहीं सरकार के लिए ही सिरदर्द बन गए हैं।
आजादी के बाद साल 1954 में वक्फ अधिनियम बनाया गया था। हालांकि, इसके बाद साल 1964 में वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था।1954 में वक्फ अधिनियम बनाए जाने के बाद से कई बाद संशोधित किया गया, जिसके तहत साल 1995 में पी वी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1954 में संशोधन किया. इसके बाद फिर 2013 में फिर वक्फ अधिनियम में संशोधन किया गया.हालांकि, जब साल 1995 में वक्फ अधिनियम में संशोधन किया गया था उस दौरान वक्फ को असीमित शक्तियां दे दी गईं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि, वक्फ बोर्ड के पास ये शक्ति है कि वो किसी भी संपत्ति पर अधिकार के लिए नोटिस भेज सकता है, लेकिन नोटिस भेजने का कोई मापदंड तय नहीं है, बिना जांच किए वो चाहे किसी को भी किसी भी प्रॉपर्टी के लिए नोटिस भेज सकता है. नोटिस भेजने के बाद एक समाचार पत्र में नोटिस को छपवाना होता है. चाहे उनको कोई नहीं पढ़ता कोई पड़ता ही ना हो।अब अगर नोटिस भेजे जाने वाले व्यक्ति ने वो नोटिस नहीं पढ़ा और 30 दिनों में अपना क्लेम नहीं किया को प्रॉपर्टी बोर्ड की हो जाएगी.
इसके अलावा, वफ्फ अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को बड़ा अधिकार दिया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता बताते हैं कि, धारा 40, बोर्ड को दी गई असीमित शक्तियों में ये एक ये भी है कि बोर्ड को अगर यकीन है कि कोई जमीन उसकी है तो वो जिलाधिकारी को ऑर्डर करेगा कि जमीन को खाली करवाना है। सामान्यत: डीएम जिले का सबसे बड़ा अधिकारी होता है। लेकिन बोर्ड के मामलों में बोर्ड सर्वोच्च है, बोर्ड खुद ही जांच कर लेगा और फिर डीएम को केवल आदेश देगा कि जमीन उनकी है और जमीन खाली करवानी है, और डीएम वो आदेश मानने के लिए बाध्य भी है। प्रदेश में साल 2003 में हुआ था वक्फ बोर्ड का गठनः देश की आजादी के बाद साल 1954 में तत्कालिक केंद्र सरकार ने 1954 में वक्फ अधिनियम बनाया था. इसके बाद साल 1964 में केंद्रीय वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था. हालांकि, 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद साल 2003 में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन किया गया ताकि, प्रदेश में मौजूद वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का रख रखाव किया जा सक।
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड राज्य में वक्फ बोर्ड के पास करीब 5344 संपत्तियां हैं. हालांकि, ये संपत्तियां अलग-अलग किस्म की हैं. वक्फ बोर्ड के अनुसार कब्रिस्तान, मस्जिद और मजार, मदरसा / मकतब, ईदगाह, कृषि भूमि, इमामबाड़ा और करबला, तकिया, मुसाफिर खाना, स्कूल, हुजरा, प्लॉट, मकान, दुकान, बिल्डिंग, खानकाह समेत अन्य तरहकी संपत्तियां शामिल हैं. हालांकि, वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक 1784 दुकानें हैं और 1070 मकान हैं. इसके अलावा प्रदेश भर में 764 कब्रिस्तान और 709 मस्जिदें हैं.
जिलेवार वक्फ बोर्ड की संपत्तियां: उत्तराखंड वक्फ बोर्ड में करीब 5344 पंजीकृत संपत्तियां हैं, जिसमें से सबसे अधिक संपत्तियां हरिद्वार जिले में 2791 तो वही, सबसे कम चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले में चार-चार संपत्तियां हैं. इसके अलावा देहरादन जिले में 2137, उधमसिंह नगर
जिले में 1427, नैनीताल जिले में 628, पौड़ी जिले में 154, अल्मोड़ा जिले में 137, चंपावत जिले में 59, टिहरी जिले में 34, पिथौरागढ़ जिले में 22 और बागेश्वर जिले में 21 संपत्तियां हैं. इनमें से तमाम संपत्तियों पर विवाद चल रहा है. वक्फ बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान समय में 848 मामले चल रहे हैं. इसके साथ ही 241 मामले लंबित पड़े हुए हैं.
राज्य सरकार वक्फ बोर्ड के लिए अध्यक्ष की नियुक्ति करती है। अमूमन जिसकी सरकार रहती है वो अपने नेता को वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपते हैं,इसके साथ ही जरूरत के आधार पर सदस्यों की नियुक्ति भी की जाती है।
साल 2019 में वक्फ बोर्ड की 2,193 संपत्तियो की जीआईएस मैपिंग कराई गई थी. इसके बाद उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने इस बात का दावा किया था कि उसकी संपत्तियां उस समय की संपत्तियों से दोगुने से अधिक है. लेकिन वर्तमान में वक्फ बोर्ड से मिली संपत्तियों की जानकारी के अनुसार वक्फ बोर्ड प्रदेश भर में 5.344 संपतियों को अपना बता रहा है।
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में पांच-पांच सदस्यीय जांच टीमों का भी गठन किया है। इन टीमों का गठन पिछले महीने किया गया था साथ ही धरातलीय जांच के लिए गठित टीमों को तीन महीने का वक्त दिया गया है।तीन महीने के भीतर टीमों को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी ताकि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सही-सही पता चल सके।देहरादून के वक्फ बोर्ड के अनुसार देहरादून जिले के रायपुर विधानसभा के अधोईवाला में उपस्थित बोर्ड की कब्रिस्तान की जमीन मौजूद है। हालांकि, यह जमीन करीब 1.8450 हेक्टेयर है जिस पर अवैध कब्जा कर तमाम लोगों ने अपने घरों का निर्माण कर दिया है। मिली जानकारी के अनुसार, वक्फ बोर्ड के कब्रिस्तान की जमीन पर राज्य गठन से पहले ही यूपी के बिजनौर और मुजफ्फरनगर से आकर विशेष समुदाय के लोग बसे हुए हैं। ऐसे में कब्रिस्तान की जमीन को कब्जा मुक्त कराए जाने को लेकर वक्फ बोर्ड ने चिन्हीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी है। इसके लिए वक्फ बोर्ड ने जिलाधिकारी / अपर वक्फ सर्वेक्षण आयुक्त, देहरादून को पत्र लिखकर कब्जेदारियो की जानकारी मांगी है.
वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी होती है कि जो कब्रिस्तान, ईदगाह, मस्जिद समेत अन्य संपत्तियां जो उसके संचालन के लिए दी गई उसको वक्फ संपत्ति माना गया है।हालांकि, लोग अपनी संपत्तियों को अल्लाह के नाम पर दान देते हैं। इसके लिए पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है ,साथ ही वक्फनामा भी कोर्ट से किया जाता है। इसके अलावा सर्वे के आधार पर भी वक्फ बोर्ड अपनी संपत्तियों पर दावा करता है क्योंकि जब सर्वे होता है तो उसको रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी दर्ज कराया जाता है लिहाजा, उसे वक्फ बोर्ड की संपत्ति माना जाता है।
आज इस नए हिंदुस्तान में इस बात पर में फोकस करने की जरूरत है कि जिस तरह से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया था कि अगर किसी जमीन पर धार्मिक स्थल बने हैं तो इस स्थल को लेकर वक्फ बोर्ड को भी शालीनता बरतनी चाहिए। उत्तराखंड राज्य में पूर्व की सरकारों के शासनकाल के दौरान वक्फ बोर्ड के संपत्तियों की बंदरबांट हुई है, हालांकि, वर्तमान समय में वक्फ बोर्ड के पास करीब 5000 से अधिक संपत्ति हैं लेकिन यह संपत्तियां और अधिक संख्या में होनी चाहिए थीं।लेकिन राज्य में बोर्ड गठन के बाद वक्फ के संपत्तियों का पूरा रिकॉर्ड उत्तराखंड नहीं पहुंचा। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर जो भष्टाचार, लूट, जमीनों को खुर्द-बुर्द सब पूर्व की सरकार के कार्यकाल के दौरान किया गया। कई बड़े नेताओं ने वक्फ बोर्ड की जमीनों पर ना सिर्फ कब्जा कर लिया बल्कि, वोट बैंक के चक्कर में नेताओं ने वक्फ की कब्रिस्तानों की जमीनों पर यूपी से तमाम विशेष के लोगों को बसाने का काम किया है।
वफ्फ बोर्ड में बड़े स्तर पर घोटाले चल रहे हैं।जो वफ्फ बोर्ड की संपत्ति थी उस पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में इस मामले की गंभीरतापूर्वक जांच होनी चाहिए और संपत्तियों को कब्जा मुक्तकर सामाजिक कार्यों में इस्तेमाल करना चाहिए।धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में वफ्फ बोर्ड की कोई आवश्यकता नहीं है,हालांकि पूर्ववर्ती सरकारों ने इसका गठन किया था लिहाजा इसका परीक्षण भी करना चाहिए कि उसमें पारदर्शिता के साथ काम हुआ है या नहीं. साथ ही कहा कि पूरी गंभीरता के साथ इस मामले को लेते हुए वक्फ बोर्ड की जमीनों को सरकारी जमीन घोषित कर देना चाहिए। केंद्र सरकार चाहे तो केंद्रीय वक्फ बोर्ड को निरस्त कर सकती है। क्योंकि जिस तरह से ये बोर्ड और अधिकार तय किए गए हैं वो हमारे संविधान के खिलाफ है, इस बोर्ड को ऐसी पावर दे दी गई है कि पहले यही वक्फ बोर्ड नोटिस भेजता है, फिर जांच करेगा, फिर बोर्ड के सामने पेशी होती है. इसके सारे मेंबर मुस्लिम होंगे. न इसमें नोटिस भेजने का कोई मापदंड है, न जांच का. इस बोर्ड का कानून असंवैधानिक है। आर्टिकल 14 – कानून के समक्ष समानता ( equality before law), न्याय का अधिकार (right to justice) के खिलाफ है. लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है. वरिष्ठ अधिवक्ता
अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि ये कानून सीधे धर्म के आधार पर बनाया गया जो अपने आप में धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। इस तरीके का प्रावधान किसी और धर्म के लिए नहीं है। इसके तौर तरीके से लोग इतने परेशान हैं कि देशभर से इसको लेकर 120 PIL फाइल हुई हैं।लेकिन इसके बाद भी केंद्र इस बोर्ड को भंग क्यों नहीं कर पा रही? इसके जवाब में अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि या तो कोर्ट ऑर्डर दे सकती है या केंद्र अपनी ओर से इस मामले पर फैसला ले सकता है, उनकी ओर से दायर पीआईएल पर केंद्र की ओर से जुलाई में जवाब आना है।
इसलिए क्योंकि, अपने गलत कानून के बदौलत वर्तमान में वक्फ बोर्ड भारत का तीसरा सबसे बड़ा लैंड होल्डर (जमींदार) बन चुका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में सबसे अधिक जमीनें भारतीय सेना के पास है, दूसरे नंबर पर रेलवे आता है और फिर तीसरे नंबर पर वक्फ बोर्ड का स्थान है. 31 जनवरी 2020 को नेशनल वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 6 लाख 16 हजार 732 संपत्तियां हैं।ये संपत्तियां करीब 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। इनमें से सबसे अधिक संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं, फिर पश्चिम बंगाल तीसरे नंबर पर कर्नाटक राज्य का नंबर है।
अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि ऐसे में अगर ये कानून निरस्त नहीं किया गया तो लाखों एकड़ जो बोर्ड के पास है उसका कुछ नहीं हो पाएगा. इसलिए ये कानून पूरी तरह खत्म होनी चाहिए, और जितनी विवादित प्रॉपर्टी हैं वो नॉर्मल कानूनन प्रोसेस की तरह संबंधित जिला कोर्ट में जाए।