उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव के तुरंत बाद और निकाय चुनाव से पहले भाजपा सहित कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों में बदलाव होने तय हैं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट राज्यसभा सांसद निर्वाचित हो गए हैं। ऐसे में जल्द भारतीय जनता पार्टी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त कर देगी। हालांकि लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा उपचुनाव के चलते आलाकमान ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने रहने दिया।
ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का प्रदेश अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। रमेश पोखरियाल निशंक पौड़ी, देहरादून से कई बार विधायक रहने के साथ सूबे के मुख्यमंत्री और बतौर हरिद्वार सांसद के तौर पर केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। स्वास्थ्य एवं निजी कारणों से उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ना पड़ा। हरिद्वार, देहरादून, डोईवाला सहित ऋषिकेश और पौड़ी जनपद में निशंक की एक अच्छी पकड़ है। जिसके चलते निशंक आगामी निकाय चुनाव में भाजपा के पक्ष में नए समीकरण बना सकते हैं।
वहीं दूसरी और कांग्रेस की बात करें तो पूर्व सीएम हरीश रावत के साले और प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा कुशल नेतृत्व की कमी के चलते कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने में नाकाम साबित हुए हैं। अभी तक पूरी प्रदेश कांग्रेस हरीश रावत के इर्द-गिर्द ही सिमटी दिखाई दी है।
कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने लोकसभा चुनाव से पहले ही हथियार डाल दिए थे। पार्टी के पुराने और बड़े चेहरों ने करन माहरा के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया था। मजबब पार्टी द्वारा कमजोर प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा गया। उनकी जगह अगर टिहरी लोकसभा सीट से युवा नेता बॉबी पंवार, हरिद्वार लोकसभा सीट से उमेश कुमार को कांग्रेस द्वारा टिकट दिया जाता तो परिणाम में नए समीकरण बन सकते थे, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष ने इसकी सिफारिश नहीं करी। हरिद्वार लोकसभा सीट पर वीरेंद्र रावत अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के चेहरे पर ही चुनाव लड़े। गढ़वाल लोकसभा सीट से गणेश गोदियाल ने पूरा चुनाव अपने दम-खम पर लड़ा और उन्होंने सांसद अनिल बलूनी को अच्छी टक्कर भी दी। टिहरी लोक सभा सीट से भाजपा के मुकाबले कमजोर प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला को उतारा गया।
अपने कार्यकाल के पूरे 2 सालों में करन माहरा पार्टी की नई कार्यकारिणी तक गठित नहीं कर सके।
अब ऐसे में पांचो सीट पर बड़ी हार का ठीकरा प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के सर फूटना स्वाभाविक है।
फिलहाल उपचुनाव के चलते दोनों ही पार्टियां अभी बदलाव की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन उपचुनाव के तुरंत बाद और आगामी निकाय चुनाव से पहले दोनों ही पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों में बदलाव होना तय हैं। जिसके लिए दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है।