ऋषिकेश विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर आरोप लग रहे हैं, कि उन्होंने मेयर की सीट आरक्षित करी।
जिस कारण उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उनका बयान जो, उन्होंने विधानसभा में दिया था, वह भी कहीं ना कहीं पहाड़ी समुदाय पर ठेस पहुंचाने वाला था। मामले को लेकर वह माफी भी मांग चुके थे।
लेकिन पहाड़ी समुदाय ने उन्हें माफ नहीं किया।
एकाएक प्रदेश के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने सीएम को अपना इस्तीफा सौंप दिया। हालांकि इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं था। इसकी पटकथा निकाय चुनाव के दौरान ही लिख दी गई थी। जब नगर निगम में मेयर पद का टिकट एक बिहारी मूल के व्यक्ति दे दिया गया।
हालांकि मेयर बने शंभू पासवन इससे पहले नगर पंचायत मुनि की रेती के अध्यक्ष रहे चुके थे, लेकिन उस वक्त भाजपा ने पहाड़ी मूल प्रत्याशी उत्तम दास को अध्यक्ष का टिकट दिया था। जबकि कांग्रेस ने शंभू पासवन को टिकट दिया, लेकिन तब उत्तम दास चुनाव जीते थे। उसके बाद कांग्रेस ने एक बार फिर शुभ पासवन नगर पंचायत मुनि की रेती से अध्यक्ष का टिकट दिया। लेकिन उन्हे पहाडी मूल के व्यक्ति शिवमूर्ति कंडवाल ने हरा दिया था। केवल एक बार उत्तम दास के निधन होने के बाद शुभ पासवान कुछ दिनों के लिए मुनि की रेती नगर पंचायत में उप चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने थे। लेकिन नगर निगम में मेयर की सीट भाजपा विधायक प्रेमचन्द अग्रवाल द्वारा उनके लिए आरक्षित करने व उन्हे चुनाव जीताने से आज वित्त मंत्री को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है। उनके त्याग पत्र में आग में घी डालने का काम सदन में उनके द्वारा पहाड़ी मूल के लोगों के लिए टिप्पणी ने किया। उनकी इस टिप्पणी से पूरे प्रदेश में गढवाली मूल के लोगों में आग लग गई। जिसके चलते भाजपा को लगातार जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा था।
वीते रविवार को बहुत भावुकता के साथ प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने इस्तीफे की घोषणा की। हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्हें गिनाना पड़ा कि राज्य निर्माण आंदोलन में
उनकी भागीदारी थी, लाठी खाई, जेल गए और भी बहुत कुछ। ये नहीं भूलना चाहिए कि राज्य निर्माण में हर नागरिक की भूमिका थी, लिहाजा अब ढाई दशक बीत जाने के बाद वह ढोल पीटने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। विधानसभा में मात्र एक अमर्यादित टिप्पणी उन्हें इस कदर हाशिए पर धकेल देगी, ये तब नहीं सोचा था।
रविवार को जो भावुकता और रुंधे गले का इस्तेमाल हुआ यदि वह बजट सत्र में ही अभिव्यक्त हो जाता और सदन में सफाई देने के बजाय माफी मांग ली होती तो शायद उत्तराखंड के उदार हृदय वाले लोग प्रकरण को भुला देते। विधानसभा में ही जब अंकिता भंडारी हत्याकांड में बीआईपी के बचाव में वीआईपी रूम की बात को भी लोगों ने न चाहते हुए भुला ही दिया था। और तो और ऋषिकेश में सुरेन्द्र नेगी सरेराह पिटाई के मामले को भी कुछ हद तक लोगों ने भुला ही दिया था, किंतु जब पहाड़ की अस्मिता को अंगुली उठाई तो जनता का गुस्सा सातवें आसमान में चढ़ गया। वैसे इस विदाई समारोह की पटकथा उस दिन फाइनल हो गई थी जब गढ़वाल सांसद और बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी ने इस प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए साफ संकेत दे दिया था। उससे पहले खुद सीएम धामी बोल चुके थे कि देवभूमि की अस्मिता को छिन्न भिन्न करने की प्रवृत्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।