टिहरी। गढ़वाल की ऐतिहासिक तिब्बत विजय का प्रतीक मंगसीर बग्वाल, दीपावली के एक माह बाद धूमधाम से मनाया जाता है। ग्रामीण थाती पर एकत्र होकर मशालें (भैलो) जलाते हैं, ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते हैं और पकवानों से भरी थालियां एक-दूसरे के घर भेजते हैं।
मंगसीर बग्वाल सिर्फ एक त्योहार नहीं, वीरता और स्वाभिमान की गौरवगाथा है।
टिहरी के सामाजिक कार्यकर्ता मोनू नौडियाल ने बताया कि 16 वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश महीपत शाह का शासन था। इस दौरान तिब्बती लोग गढ़वाल में लूटपाट करने के लिए आते थे। इनके अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए महीपत शाह ने सेनापति माधव सिंह भंडारी को तिब्बतियों खदेड़ने के लिए सेना सहित भेजा। कई दिनों के युद्ध के उपरांत माधौ सिंह भंडारी दीपावली पर्व के लिए रियासत नहीं पहुंच सके तो टिहरी रियासत ने दिवाली ना मानने का फैसला किया। दीपावली के 11 दिन बाद माधौ सिंह भंडारी सेना का विजयी पताका लेकर टिहरी रियासत पहुंचे तो उनका स्वागत ग्रामीणों ने दिए जलाकर किया। तभी से हर वर्ष इगास पर्व और मंगसीर बग्वाल मनाए जाने की परंपरा है।