उत्तराखंड सरकार के अजीबो गरीब किस्से भी रोज उजागर होते हैं।उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार वैसे तो जीरो टोलरेंस की बात करती है।
पर कुछ सरकारी विभाग आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं।
ताजा मामला लोक निर्माण विभाग का है यहां पर विभिन्न इंजीनियरों के साथ-साथ तीन ऐसे सहायक अभियंताओं को भी पदोन्नति देकर अधिशासी अभियंता बना दिया गया है जिनको विजिलेंस ने बाकायदा रिश्वत के मामले में पकड़ा था और वे जेल में भी रहे थे।
सहायक अभियंता सिविल प्रवीण कुमार कर्णवाल और रजनीश कुमार सहित राजवर्धन तिवारी को सहायक अभियंता के पद से पदोन्नति देकर अधिशासी अभियंता बना दिया गया है।
रिश्वत लेकर पकड़े गए तीनों इंजीनियरों के खिलाफ अभी तक न्यायालय में आपराधिक मुकदमा लंबित हैं।
कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे विजिलेंस डिपार्टमेंट मे काम के बोझ के चलते इनका मुकदमा अभी तक निस्तारित नहीं हो सका है। इसी का फायदा उठाते हुए एक शासनादेश का हवाला देकर इन रिश्वतखोर इंजीनियरों को पदोन्नति दे दी गई है।
हालांकि शासन का कहना है कि यह पदोन्नतियां तदर्थ रूप से दी गई हैं और न्यायालय के फैसले के बाद इस पर फिर से विचार किया जाएगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या लोक निर्माण विभाग में इन भ्रष्ट इंजीनियरों के बिना काम नहीं चल सकता जो इन्हें अधिशासी अभियंता बना दिया गया।
इन रिश्वतखोर इंजीनियरों का प्रमोशन उत्तराखंड में चर्चा का विषय बना हुआ है।
आश्चर्य की बात यह है कि लोक निर्माण विभाग द्वारा भी इनके खिलाफ अपने स्तर से कोई कार्यवाही नहीं चलाई गई।
इनकी पदोन्नति के पीछे शासन में बैठे अफसर कार्मिक विभाग के शासनादेश का हवाला दे रहे हैं। रिश्वत लेने के मामले में पकड़े जाने और जेल में रहने के बाद भी इन भ्रष्ट इंजीनियरों को पदोन्नति का तोहफा दिया जाना सरकार की नीयत पर संदेह पैदा करता है।