उत्तराखंड, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, आज आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण, आने वाले समय में सरकार को कर्मचारियों के वेतन देने की समस्या उत्पन्न हो सकती है, जैसा कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में हो रहा है।
वित्तीय तंगी के चलते पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और अन्य शीर्ष पदाधिकारियों का दो माह का वेतन लंबित कर दिया है। मतलब की अगले दो माह तक इन्हें वेतन नहीं मिलेगा। वहीं हिमाचल सरकार में फंड न होने के चलते कर्मचारियों का वेतन और पेंशन भी लंबित कर सरकारी खजाने में बढ़ोतरी के उपाय किए जा रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड सरकार की बात करें तो गैरसैंण में मानसून सत्र आयोजित कर सर्वप्रथम विधायकों के वेतन वृद्धि को दोगुना तक कर अपनी पीठ स्वयं थपथपा रही है। अब प्रदेश में विधायकों को वेतन भत्ते जोड़कर करीब चार लाख रुपए मासिक मिलने की कवायद चल रही है।
वर्तमान में उत्तराखंड सरकार पर 85 हजार 60 करोड़ रुपए कर्ज और दायित्व हैं। इसमें 67 हजार 960 हजार रूपए कर्ज और 17 हजार 100 करोड़ रुपए दायित्व हैं।
ऐसे में यदि सरकार द्वारा तत्काल अपना राजस्व बढ़ाने के लिए उपाय ढूंढ़ने होंगे, या फिर अपने खर्चों में तत्काल कटौती करना शुरू करनी होगी। अन्यथा पड़ोसी राज्य हिमाचल की तरह उत्तराखंड सरकार पर भी अधिकारियों और कर्मचारियों को वेतन/पेंशन देने के लाले पड़ जाएंगे।
हिमाचल, पंजाब, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्य हैं, जो कर्ज के बोझ में दबते जा रहे हैं। अंत में जनता को ही इसका परिणाम भुगतना होगा। पड़ोसी राज्य हिमाचल सरकार ने एक चेतावनी दी है, पूरे देश को इसकी प्रति ध्वनि सुनाई देनी चाहिए, वरना हर किसी को हर्जाना भरना पड़ सकता है। हिमाचल में तो इस दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। लेकिन उत्तराखंड में इस तरह की कोई पहल नहीं की गई है। सरकार को फिक्स्ड खर्च घटाने व आमदनी बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही राजनीतिक दलों को भी चेतने की जरूरत है, सरकारी खजाने पर ना तो राजनीति होनी चाहिए और ना ही मनमानी।
घट रही जीडीपी बढ़ रहा खर्च और घाटा
भारतीय रिजर्व बैंक और पीआरएस इंडिया के आंकड़ों पर गौर करें तो मार्च 2023 तक उत्तराखंड की जीडीपी में 32 प्रतिशत बकाया है साथ ही 2.7 प्रतिशत राजकोष में घाटा हुआ है। इसके साथ ही वर्ष 2019 से 24 तक औसतन इतने ही प्रतिशत सरकार की तरफ से पूंजीगत खर्च हुआ है। प्रदेश में 2023-24 के बजट के अनुसार कुल रिवेन्यू 57,057 करोड रुपए प्राप्त हुआ है, इसके साथ ही 52,747 करोड रुपए खर्च किया गया है। वर्ष 2023- 24 के बजट के अनुसार सरकार द्वारा विभिन्न उद्योगों को अनुमानित 493 करोड रुपए की सब्सिडी दी है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 252 करोड रुपए थी।
एक चुनौतीपूर्ण भविष्य
उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति के पीछे कई कारण हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन और कृषि पर निर्भर है, जो अस्थिर और मौसमी हैं। इसके अलावा, राज्य में उद्योगों की कमी और बेरोजगारी भी समस्या है, जो आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।
इसके अलावा, उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों की कमी है, जो आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी चुनौती है। राज्य में जल संसाधनों की कमी है, जो कृषि और उद्योगों के लिए एक बड़ी समस्या है।
उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए, राज्य सरकार को कई कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, राज्य सरकार को उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे, जो रोजगार के अवसर पैदा करेंगे और आर्थिक विकास को बढ़ावा देंगे। इसके अलावा, राज्य सरकार को कृषि को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे, जो राज्य की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राज्य सरकार को प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने के लिए कदम उठाने होंगे, जो आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकार को जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए कदम उठाने होंगे, जो कृषि और उद्योगों के लिए एक बड़ी समस्या है।
यदि इस दिशा में सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण, आने वाले समय में वेतन देने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। राज्य सरकार को राजकोष में वृद्धि के लिए कड़े कदम उठाने होंगे ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके। अन्यथा पड़ोसी राज्य हिमाचल की तरह ही उत्तराखंड की जनता को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ सकता है!