आईएफएस अधिकारी और मशहूर व्हिसलब्लोअर संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामलों में न्यायाधीशों के लगातार रिक्यूजल (स्वयं को सुनवाई से अलग करना) का सिलसिला जारी है। अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी ने भी उनकी अवमानना याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। यह देश के न्यायिक इतिहास में एक अभूतपूर्व रिकॉर्ड है, क्योंकि अब तक किसी एक व्यक्ति से जुड़े मामलों की सुनवाई से 15 न्यायाधीश अलग हो चुके हैं।
फरवरी 2025 में, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की एक डिवीजन बेंच, जिसमें हरविंदर ओबेरॉय और बी आनंद शामिल थे, ने भी बिना कोई कारण बताए स्वयं को अलग कर लिया था। उन्होंने केवल रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि भविष्य में चतुर्वेदी के मानले उनके समक्ष सूचीबद्ध न किए जाएँ। यह बेंच चतुर्वेदी की अप्रैजल रिपोर्ट से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी।
फरवरी 2024 में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने अधिकारी की प्रतिनियुक्ति से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था। इस बार भी सुनवाई से अलग होने के आदेश में किसी आधार का उल्लेख नहीं किया गया था।
इससे पूर्व वर्ष 2018 में, एक समान मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि अधिकारी से संबंधित सेवा मामलों की सुनवाई केवल नैनीताल सर्किट बेंच में ही की जाए। साथ ही, इस आदेश में केंद्रीय सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
वर्ष 2021 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने पहले के इस रुख को दोहराया, जिसे केंद्र सरकार ने पुनः सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेच ने इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का निर्णय लिया। नवंबर 2013 में, तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। यह मामला हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्य के अन्य वरिष्ठ राजनेताओं व नौकरशाहों की भूमिका में सीबीआई जांच की मांग से संबंधित था, जिन पर चतुर्वेदी ने विभिन्न भ्रष्टाचार के मामलों का आरोप लगाया था और उनके उत्पीड़न की भी शिकायत की थी। बाद में, अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति यूयू ललित ने भी इस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।
अप्रैल 2018 में, शिमला की एक अदालत के न्यायाधीश ने स्वयं को संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विनीत चौधरी द्वारा दायर मानहानि के मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था। मार्च 2019 में ही तत्कालीन अध्यक्ष, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट), दिल्ली, न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हन रेड्डी ने संजीव चतुर्वेदी के विभिन्न स्थानांतरण याचिकाओं से संबंधित मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था और इसके पीछे उन्होंने कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को कारण बताया था।
फरवरी 2021 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) दिल्ली के एक अन्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति आर.एन. सिंह ने भी संजीव चतुर्वेदी की एक सेवा संबंधी मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।
मई 2023 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने बिना कोई कारण बताए संजीव चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था।
नवंबर 2023 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के न्यायाधीशों की एक बेंच, जिसमें गनीष गर्ग और छछबिलेंद्र रौल शामिल थे, ने सजीव चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था। उस वर्ष जनवरी में एक अन्य कैट न्यायाधीश, न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने भी उनके एक सेवा संबंधी मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया।
क्यों चर्चा में रहते हैं संजीव चतुर्वेदी?
संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड कैडर के 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने और सिस्टम में पारदर्शिता की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। हरियाणा कैडर में रहते हुए उन्होंने कई प्रभावशाली नेताओं और नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे, जिसके बाद उन्हें उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ा।
न्यायपालिका के लिए सवाल
इतने बड़े पैमाने पर न्यायाधीशों का लगातार एक ही अधिकारी से जुड़े मामलों से अलग होना देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए चिंतन का विषय बन गया है। खास बात यह है कि ज्यादातर मामलों में न्यायाधीशों ने अलग होने का कोई कारण दर्ज नहीं किया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिलसिला न केवल पारदर्शिता और न्याय की उपलब्धता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संजीव चतुर्वेदी के मामलों की संवेदनशीलता कितनी अधिक है।