उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग की बदहाली स्वयं ही शिक्षा विभाग में उच्च पदों पर बैठे लोगों के द्वारा की जा रही है। पिछले कई माह पूर्व हुई पद्दोन्नति के बाद भी उप शिक्षा अधिकारी से बने खण्ड शिक्षा अधिकारियों की अभी तक उनके नए स्थानों पर तैनाती नहीं की गई है जबकि अधिकतर विकासखण्डों में स्थान रिक्त हैं। पूर्व में बने अधिकतर खण्ड शिक्षा अधिकारियों पर पहाड़ के दुर्गम विकासखण्डों तक में दोहरा प्रभार है जबकि सुविधा के नाम पर सरकारी आवास तक नहीं हैं। पूरे विकासखण्ड के अधिकारी के पास एक सरकारी वाहन तक नहीं है और न ही इतना पर्याप्त वाहन भत्ता दिया जाता है कि जिससे अधिकारी किराए का वाहन का भी उपयोग कर सकते हों। सोचने का विषय है कि एक तरफ विभाग में आये दिन शिक्षकों के लिए करोड़ो का बजट खर्च करके शिक्षकों के लिए मात्र समय व्यतीत करने का जरिया बन चुकी अनुपयोगी कार्यशालाएं व प्रतियोगितायें कराई जा रही हैं जो पूरे वर्ष चलती रहती हैं। साथ ही शिक्षकों की अनुपस्थिति की वजह से सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या प्रत्येक वर्ष कम होती जा रही है। विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम भी पूर्ण नहीं हो पाते हैं। एक तरफ सरकार मुफ्त शिक्षा के नाम पर राष्ट्र की जनता के साथ राजनीति करती है जबकि दूसरी तरफ सच्चाई कुछ और ही है जो कि भविष्य के लिए बहुत ही दर्दनाक हो सकती है।