उत्तराखंड में शादी के लिए लड़कियों की डिमांड बढ़ती जा रही है। उन्हें या तो लड़का सरकारी नौकरी वाला चाहिए या फिर उसका हल्द्वानी या देहरादून में अपना मकान और प्लॉट हो, लेकिन अब लड़कियों की बढ़ती डिमांड को देखते हुए यहाँ के लड़कों ने अपना रूख दूसरे राज्यों की और कर लिया है। लड़कियों के सौ नखरों को उठाने की बजाए लड़के अब अन्य राज्यों से शादी करके बहू ला रहे हैं।
अब उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में दानपुर के नीरज ने नागालैंड की लड़की मोना से शादी की है। नागालैंड की बेटी अब दानपुर की बहु बन गई है दोनों ने धूम धाम से शादी की है।
उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में अविवाहित युवकों की संख्या में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है। 90 के दशक के बाद के युवा लड़कों के लिए शादी करना अब किसी परीक्षा से कम नहीं। पहाड़ों में लगातार युवतियों की मैदानी क्षेत्र में बसने की सोच और सरकारी नौकरी की चाह, मकान या प्लाट युवा लड़कों के शादी करने के सपनों पर पानी फेर रहा है। गढ़वाल के देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार तो कुमाऊं के हल्द्वानी, रामनगर, नैनीताल, काशीपुर में मकान अथवा जमीन की डिमांड को लेकर युवतियां स्थानीय युवकों से शादी के लिए इंकार कर रही है। जिस कारण पहाड़ के गांव में अविवाहित युवकों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इनमें से अधिकांश युवा 30 से 40 की उम्र के पड़ाव पर है, लेकिन लड़कियों की भारी भरकम डिमांड पूरी न कर पाने के कारण युवा अविवाहित ही रह रहे हैं।
अग्निवीरों के लिए शादी ‘अग्निपथ’ के समान
भारतीय सेना में अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया के तहत भर्ती होने वाले सैनिकों के लिए भी शादी करना एक अग्निपथ के समान है। बड़े पैमाने पर अग्नि वीरों को लड़कियां शादी के लिए नकार रही हैं। 4 साल बाद अग्निवीर बेरोजगार हो जाएगा और उनको पेंशन भी नहीं मिलेगी फिर उनका क्या होगा, यही सोच कर लड़कियां फौजी से भी शादी के लिए मुकर रही हैं।
ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा अकाल
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ब्राह्मण वर्ग के लोगों में सर्वाधिक पलायन होने के कारण ब्राह्मण कुल के पहाड़ों में रह रहे युवाओं को समस्या का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरे नंबर पर राजपूत घरानों में भी यही परेशानी है। कुछ स्तर पर दलित समुदाय में शादियों को लेकर लड़कियों की स्थिति में सुधार है। इसका एक प्रमुख कारण इस समुदाय का पलायन में कमी का प्रतिशत बहुत कम है।
सोशल मीडिया के जमाने में अक्सर युवा अपनी पसंद से ही शादी कर रहे हैं। कुछ हद तक युवतियां गलत लोगों के झांसे में भी आ जाती हैं। पहाड़ों के दूरस्थ गांवों में बाहरी लोगों के प्रवेश के चलते उनके द्वारा सीधे-सादे पहाड़ी महिलाओं एवं युवतियों को बहला-फुसलाकर भगा ले जाने के मामले में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है, जिस कारण भी पहाड़ में लड़कियों का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। इन बाहरी लोगों में फेरी वाले, कबाड़ी, मिस्त्री और बाहरी दुकानदार सहित ठेकेदार होते हैं। महज ढाई साल के आंकड़े ही चौंकाने के लिए काफी है।
जातीय बंधन अब नहीं शादी के आगे
अपने समुदाय में लड़कियों की कमी के चलते अब पहाड़ के युवा जातीय बंधन को तोड़ रहे हैं। ब्राह्मण-ठाकुर या दलित होना अब एक विशेष महत्व नहीं रखता है। उत्तराखंड में युवाओं की सोच बदली है।
जनवरी 2021 से मई 2023 तक 3854 महिलाएं गायब
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में जनवरी 2021 से मई 2023 तक 3854 महिलाएं गायब हो गई हैं। ढाई साल के अंतराल में लगभग 4000 महिलाओं का अचानक घर से लापता हो जाना चिंताजनक विषय है। वर्ष 2021 में 1494 महिलाएं प्रदेशभर के अलग-अलग जनपदों में गायब हुई। जिनमें कि 404 अविवाहित युवतियां / नाबालिग थी। वहीं 2022 में कुल 1632 महिलाएं गायब हुई, जिनमें 425 अविवाहित/नाबालिग थी। वहीं 2023 तक कुल 728 महिलाएं लापता हुई, जिनमें 305 अविवाहित/ नाबालिग थी।
युवा ले रहे मैट्रिमोनियल साइट का सहारा
उत्तराखंड में लड़कियों द्वारा शादी को इंकार के चलते मैट्रिमोनियल साइटों के बल्ले-बल्ले हो रहे हैं। जिस कारण युवा इन साइट पर अपना प्रोफाइल अपलोड कर लड़कियां ढूंढ रहे हैं। प्रदेश में पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान कई मैट्रिमोनी साइट इन अविवाहित युवाओं की बदौलत महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं।









