देहरादून। आयुर्वेद विभाग लंबे समय से घोटाले के लिए कुख्यात रहा है। अब एक ताजा घोटाला सामने आ रहा है, जिसमें ऋषिकुल राजकीय आयुर्वैदिक फार्मेसी में कच्ची औषधियों की खरीद के टेंडर में करोड़ों रुपए का घोटाला सामने आया है। लोकल कंपनियों को बाहर करने के लिए जानबूझकर टेंडर शर्तों में 3 वर्ष तक 4 करोड़ रुपए टर्नओवर की शर्त को जोड़ दिया गया, जबकि सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार ऐसा कोई भी नियम आयुष विभाग में खरीद के लिए निर्धारित नहीं है।
- इसके कारण लंबे समय से उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर कच्ची औषधियों की आपूर्ति कर रही सभी फर्में टेंडर प्रक्रिया से ही बाहर हो गईं।
अब खरीद में शामिल जिम्मेदार अधिकारियों ने बाजार दरों से लगभग 6 गुना से भी अधिक दरों पर कच्ची औषधियों की खरीद कर ली है, जिसमें सूत्रों के अनुसार अभी तक दो करोड़ रुपए से भी अधिक का भुगतान किया जा चुका है।
यह टेंडर प्रक्रिया सीधे निदेशालय स्तर से संचालित की गई हैं, जबकि अभी तक फार्मेसी के अधीक्षक स्तर पर ही यह टेंडर होते थे और इसमें लोकल तथा छोटी फर्में भी भाग लेती थी और सरकार को कम दाम में अच्छी गुणवत्ता की कच्ची औषधियां मिलती थी।
नियमों का उल्लंघन करके टेंडर में ऐसी ऐसी शर्तें जोड़ी गई हैं जिससे प्रतिस्पर्धा तो खत्म हो ही गई है साथ ही उत्तराखंड की सभी फर्में टेंडर प्रक्रिया से बाहर हो गई है। सरकार को बाजार से कई गुना अधिक दाम पर माल खरीदना पड़ रहा है और एमआरपी से भी काफी अधिक दरों पर खरीद हो रही है।
यह अपने आप में एक अहम सवाल है कि एक ओर सरकार भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री के अधीन आयुष विभाग में ही सरकारी धन की खुलेआम लूट हो रही है।
देखने वाली बात यह होगी कि विभागीय मंत्री तथा मुख्यमंत्री इस घोटाले का क्या संज्ञान लेते हैं !
इस संबंध में राज्य आंदोलनकारी तथा उत्तराखंड लोकायुक्त अभियान के संयोजक परमानंद बलोदी ने आयुर्वेद विभाग के निदेशक को भी भ्रष्टाचार के संबंध में ईमेल और रजिस्टर्ड डाक से शिकायत की थी लेकिन उनकी शिकायत पर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया है और खरीद प्रक्रिया बदस्तूर जारी है।
राज्य आंदोलनकारी सुमन बडोनी चेतावनी देते हुए कहते हैं कि यदि यह घोटाला जारी रहा तो लोकायुक्त अभियान के कार्यकर्ता इस भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।