जब भी देश की विपक्षी पार्टियों प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध एकजुट होने का प्रयास करती हैं तभी प्रधानमंत्री ऐसा मास्टर स्ट्रोक चलते हैं कि विपक्षी खेमे में हलचल पैदा हो जाती है और वह उसका तोड़ खोजने के जुगत में लग जाते हैं। ऐसा लगता है मानो पिच मोदी जी की है और खेल वो रहे हैं। हाल ही में I.N.D.I.A के जरिये एकजुट हुआ विपक्ष मोदी सरकार को कुर्सी से हटाने की रणनीति बनाने एकजुट होने की कोशिश कर रहे थे ,कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चले मास्टर स्ट्रोक से पूरा विपक्ष में हड़कंप मच गया है। ‘एक देश एक चुनाव’ की दिशा में तेजी से आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है। इस कमेटी के सदस्यों को लेकर आज एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए कमेटी के अन्य सदस्यों के नाम की जानकारी भी साझा की जा सकती है। केंद्र के इस फैसले से एक बार फिर उन अटकलों को हवा मिल गई है कि सरकार इस बार लोकसभा चुनाव वक्त से पहले करवा सकती हैं। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है, जिसमें कई अहम बिल पेश होने की संभावना जताई जा रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार,वन नेशन वन इलेक्शन, यूनिफॉर्म सिविल कोड और महिला आरक्षण का बिल ला सकती है। सरकार के इस फैसले से पूरे विपक्ष और एकजुट I.N.D.I.A की बेचैनी बढ़ गई है।
कांग्रेस ने किया विरोध
इसकी जानकारी मिलते ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि ‘पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने की क्या जल्दी है? देश में महंगाई समेत कई मुद्दे हैं जिनपर सरकार को पहले एक्शन लेना चाहिए।’ उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे पर केंद्र की नीयत साफ नहीं लगती है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि वह व्यक्तिगत रूप से वन वन नेशन वन इलेक्शन प्रपोज का स्वागत करते हैं। उनका यह बयान उसे समय आया जब समूचा विपक्ष प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर घेरने की योजना बना रहा था।
बीजेपी के नेताओं ने इसे देश के बेहतर भविष्य के लिए उठाया जाने वाला सही फैसला बताया है। इस मामले में केंद्र सरकार ने दलील देते हुए कहा कि लॉ कमीशन अपनी रिपोर्ट में कह चुका है कि देश में बार-बार चुनाव कराए जाने से सरकारी खजाने के पैसे और संसाधनों की जरूरत से ज्यादा बर्बादी होती है। संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर एक साथ चुनाव कराना संभव ना हो पाने के चलते हमने कुछ जरूरी संवैधानिक संशोधन करने के सुझाव दिए हैं। आयोग ने भी सुनिश्चित किया है कि संविधान में आमूलचूल संशोधन की जरूरत है और इस पर चर्चा होनी चाहिए।
पहले भी एक साथ चुनाव हो चुके हैं देश में
कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने संसद के मॉनसून सत्र के दौरान कहा थाकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए एक व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा तैयार करने के लिए मामले जांच के लिए विधि आयोग के पास भेज दिया गया है। संवैधानिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर एक देश-एक चुनाव कानून बिल को लागू किया जाता है तो इसके लिए संविधान में कम से कम 5 संशोधन किए जाने चाहिए।यहां यह भी बताते चलें कि इससे पहले भी देश में 1951-1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और सभी विधानसभाओं में एक साथ चुनाव कराए जा चुके हैं।