सियासत के खेल भी खूब निराले होते है। जब वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, तब राज्य में भर्ती घोटाले और पेपर लीक के मास्टरमाइंड हाकम सिंह के वही हाकिम रहे हैं। और तब उन्होंने ही उन्हें पूरा संरक्षण दिया , लेकिन आज जब वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर नहीं है तो अब कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री धामी को पेपर लीक की सीबीआई जांच करनी चाहिए। जबकि हकीकत यह भी है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समय में भी पेपर लीक और भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की गई थी लेकिन तब त्रिवेंद्र सिंह रावत इन घोटालों की सीबीआई जांच करने से साफ मुकर गए थे।
इसको कहते हैं औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत।
यहां तक कि उस दौरान वन दरोगा भर्ती घोटाले से निराश होकर एक बेरोजगार अभ्यर्थी ने यह कहते हुए आत्महत्या कर ली थी कि वह अगले जन्म में भर्ती परीक्षा देंगे , क्योंकि इस जन्म में भर्ती घोटाले ने उनका भविष्य खराब कर दिया है।
यही नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा विधानसभा में एनएच 74 भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच करने का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में वह रहस्य पूर्ण ढंग से इस कदम से पीछे हट गए और फिर उन्होंने इस बात पर कुछ न कहते हुए मात्र इसकी एसआईटी जांच करानी ही उचित समझी।
गौर तलब है कि वर्ष 2016 में जब भाजपा सत्ता में नहीं थी तो खुद एनएच- 74 घोटाले की सीबीआई जांच की मांग कर रही थी। उसके बाद वर्ष 2017 में भाजपा सत्ता में आई और त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने।
मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने बाकायदा विधानसभा सत्र में एनएच-74 भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच करने का वचन दिया लेकिन फिर आश्चर्यजनक ढंग से बैक फुट पर आ गये। जबकि खुद इस घोटाले के मुख्य आरोपी डीपी सिंह और विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता भी इस घोटाले की सीबीआई जांच करने की मांग कर रहे थे। इसके बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत की चुप्पी उस दौर में काफी चर्चा का विषय रही थी।
बड़ा सवाल यह है कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने कार्यकाल में बाकायदा विधानसभा में आश्वासन देने के बावजूद सीबीआई जांच कराने के वचन से मुकर गए तो फिर आज वह किस मुंह से सीबीआई जांच करने की मांग कह रहे हैं।
इसके पीछे कहीं ना कहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत की बेरोजगारों के प्रति सहानुभूति कम और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सियासी अदावत ही साफ नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह बेरोजगार आंदोलन का इस्तेमाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए करना चाहते हैं।
पुरानी है धामी से अदावत
गौर तलब है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पहले दिन से ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विरोधी रहे हैं उनके इस विरोध की पहली झलक तब मिली थी जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विधानसभा का चुनाव खटीमा से हार गए थे और त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तत्काल बयान दिया था कि मुख्यमंत्री कोई विधायकों में से ही चुना जाना चाहिए। साफ है कि वह तब भी पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते थे। इसके बाद वह लगातार उत्तराखंड में कानून व्यवस्था से लेकर अवैध खनन और अन्य तमाम मामलों को मुखरता से उठाकर सरकार की घेराबंदी करते रहे हैं ।
यहां तक कि वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा संसद में उत्तराखंड में अवैध खनन कराए जाने की बात कही थी और अपनी ही भाजपा सरकार को बैक फुट पर ला दिया था।
हालांकि एक हकीकत यह भी है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के अपने कार्यकाल में ही इतना अवैध खनन हुआ कि उस पर कैग ने भी ऑडिट आपत्ति जताई थी और मातृ सदन हरिद्वार के संतों ने भी इस दौरान अवैध खनन पर रोक न लगने की बात कहते हुए आत्महत्या कर ली थी। इसके बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने कार्यकाल में अवैध खनन को खूब संरक्षण दिया।
बहरहाल पेपर लीक भर्ती घोटाले को लेकर त्रिवेंद्र सिंह का हालिया बयान बड़ा चर्चाओं में है , क्योंकि सभी यह बात भली-भांति जानते हैं कि पेपर लीक और भर्ती घोटाले के मास्टरमाइंड रहे हाकम सिंह को उन्होंने पूरा संरक्षण दिया दे रखा था। उनके कार्यकाल में एक वाक्यात काफी चर्चित रहा था, जब एक प्रसूता को वाहन की सुविधा न मिलने पर सड़क पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा था, वहीं हाकम सिंह की मां के बीमार होने पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा उनके लिए हेलीकॉप्टर भिजवाया था। इसको लेकर तब त्रिवेंद्र सिंह रावत की भी काफी किरकिरी हुई थी, लेकिन अपने कार्यकाल में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तमाम आरोपों प्रत्यारोपों और आंदोलन की कोई परवाह नहीं की थी, बल्कि घोटाले पर सवाल उठाने वालों के विरुद्ध उन्होंने काफी दमनात्मक कार्यवाही की थी।
एनएच घोटाले से त्रिवेंद्र के मुकरने की पूरी कहानी
राष्ट्रीय राजमार्ग 74 के लिए अधिग्रहण की गई भूमि के मुआवजा निर्धारण में की गई अनियमितताओं की सीबीआई जांच की मांग पर वाकई त्रिवेंद्र सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे।
पर्वतजन को सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि 19 मई 2017 के बाद एनएच 74 घोटाले में शासन के स्तर से एक लाइन तक नहीं लिखी गई और एक हस्ताक्षर तक नहीं किए गए हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड सचिवालय के गृह अनुभाग-2 में एन एच 74 से संबंधित सीबीआई जांच प्रकरण के सभी दस्तावेज संरक्षित हैं। पर्वतजन ने यह सभी दस्तावेज सूचना के अधिकार में हासिल किए तो यह खुलासा हुआ कि एनएच 74 घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के प्रयास दम तोड़ गए हैं।
इस फाइल की नोटशीट पर अंतिम हस्ताक्षर 19 मई 2017 के हैं।
गृह अनुभाग ने भी इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के विषय में एक चौंकाने वाली टिप्पणी पृष्ठ संख्या 20 पर लिखी गई है। इसमें लिखा है कि कुमाऊं के तत्कालीन मंडलायुक्त तथा एन एच 74 की जांच समिति के अध्यक्ष सेंथिल पांडियन ने अपनी जांच रिपोर्ट 7 अप्रैल 2017 को ही शासन मे सबमिट कर दी थी। इसमें सीबीआई से जांच कराने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखने का अनुरोध किया था। अनुभाग ने अपने स्तर से ही 26 अप्रैल 2017 को मंडलायुक्त कुमाऊं की रिपोर्ट नत्थी करते हुए केंद्र सरकार के डीओपीटी को सीबीआई जांच कराने के लिए एक पत्र भेज दिया था।
एक महीने बाद 17 मई 2017 को गृह विभाग के उप सचिव अहमद अली ने अपनी टिप्पणी में साफ लिखा है कि अनुभाग ने 26 अप्रैल 2017 को इसकी जानकारी गृह विभाग के किसी भी अधिकारी को नहीं दी। उन्होंने आगे लिखा है कि जब इस विषय में अनुभाग के कार्मिक से पूछा गया तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने इसमें लिखा भी है कि इस प्रकार के संवेदनशील प्रकरण पर अनुभाग की कार्यवाही उचित नहीं है।
इससे ऐसा लगता है कि यदि अनुभाग स्तर पर यह मामला केंद्र सरकार को नहीं भेजा जाता तो फिर सीबीआई जांच की मांग इसी स्तर पर एक महीने पहले ही दम तोड़ चुकी होती।
बहरहाल 19 मई के बाद इस पर फिर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई। जाहिर है कि किसी न किसी दबाव में आने के बाद त्रिवेंद्र सरकार ने यह विचार हमेशा के लिए त्याग दिया था।
राजमार्ग घोटाले के मुख्य आरोपी डी पी सिंह सहित मुख्य मिलीभगत करने वाली कांग्रेस पार्टी जब सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर सरकार की घेराबंदी कर रही थी तो फिर सरकार आखिर किस डर से अपने ही बयान को वापस लेकर बैकफुट पर खड़ी हुई ! सरकार की जीरो टॉलरेंस की सबसे ज्यादा मजाक भी राजमार्ग घोटाले को लेकर ही उड़ाई जाती है। हालांकि यह भी सच है कि एस आई टी अपने अधिकारों के सीमित दायरे में सही लेकिन संतोषजनक काम किया।
यह सच्चाई नकारा नहीं जा सकता कि 2016 में शुरू हुआ भर्ती घोटाला 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सख्ती के बाद ही रुका। 2016 में कांग्रेस सरकार के बाद 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार बनी, लेकिन वह भर्ती घोटाले के सिंडिकेट पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। 2022 में जब मुख्यमंत्री धामी को इसकी शिकायत मिली, तो उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए एसटीएफ से जांच कराई। जांच में धीरे-धीरे घोटाले की परतें खुलीं और अब तक 41 आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है। धामी सरकार ने उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश तक फैले नकल माफियाओं के नेटवर्क को भी ध्वस्त कर दिया।
2020 में हाकम सिंह की बच निकलने की घटना
2020 में हरिद्वार जिले में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में ब्लूटूथ के जरिए नकल के मामले में हाकम सिंह रावत बच निकला था। मंगलौर थाने में आलोक की शिकायत पर हाकम सिंह, मुकेश सैनी, कुलदीप राठी, गुरुबचन, पंकज सहित कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। हालांकि, इनमें से किसी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई और न ही पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट (एफआर) दाखिल की। माना जाता है कि अगर उस समय इस सिंडिकेट पर सख्ती से कार्रवाई की गई होती, तो उत्तराखंड के युवाओं के साथ इतना बड़ा धोखा नहीं होता।