टनकपुर (चम्पावत)। कबीरदास जी का गुरु महिमा पर एक महत्वपूर्ण दोहा “सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय। सात समुंदर की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय ॥” अर्थात यदि सारी पृथ्वी को कागज बना लिया जाए, सारे जंगल को कलम और सातों समुद्रों की स्याही बनाकर भी लिखा जाए, तो भी गुरु की महिमा को पूरी तरह से नहीं लिखा जा सकता है।
यह दोहा गुरु के असीम और अनंत गुणों की ओर इशारा करता है, जिनकी तुलना किसी भी भौतिक वस्तु से नहीं की जा सकती। लेकिन आखिर टनकपुर में एक शिक्षक ने अपने लहू से प्रधानमंत्री को खत लिखा, तो कारण भी विशेष होगा। जी हाँ हम बात कर रहे हैं राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय सदस्य और उत्तराखण्ड आंदोलनकारी शिक्षक रवि बगोटी की, जिन्होंने प्रधानमंत्री को अपने खून से खत लिख कर भेजा हैं। जिसका मूल कारण बताया जा रहा हैं कि उत्तराखंड राज्य में वर्षों से प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य और प्रवक्ताओं के पद रिक्त हैं। पर अपने सेवाकाल के 25 से 30 वर्ष के ही पद में कार्यरत रहने के बाद भी शिक्षकों की पदोन्नति बर्षों से रुकी हुई है। इस पर राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखण्ड समय समय पर आन्दोलन करता आया है। पर वर्तमान में पदोन्नति, स्थानांतरण, पुरानी पेंशन योजना जैसी विभिन्न 34 माँगों पर आन्दोलन पिछले 1 महीने से ज्यादा समय से चल रहा है। जबकि छात्र हित के सभी मुद्दों पर स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि उत्तराखण्ड के 90% हाई स्कूलों में प्रधानाध्यापक एवमं 95% इण्टर कालेजों में प्रधानाचार्यों के पद रिक्त हैं। जिला चम्पावत में किसी भी हाई स्कूल में एक भी पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक नहीं है और इण्टर कालेजों में केवल 5 प्रधानाचार्य पूर्णकालिक हैं, जिनमे से 4 प्रधानाचार्य एक दो साल में रिटायर होने वाले हैं।
प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक के पदों पर शिक्षकों की पदोन्नति शत प्रतिशत वरिष्ठता के आधार पर हो यही माँग लेकर आंदोलनरत शिक्षकों का संगठन सरकार और विभाग के रवयै से नाराज है। शिक्षकों की पदोन्नति न कर विभाग इन पदों पर सीधी भर्ती करने की जिद्द कर बैठा है। जो शिक्षकों के साथ अन्यायपूर्ण नीति है। इस भर्ती के खिलाफ उत्तराखण्ड के हजारों शिक्षक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। फिर भी विभाग और सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। इसलिए राजकीय शिक्षक संघ की प्रांतीय कार्यकारणी के आह्वान पर प्रत्येक शिक्षक अपने रक्त से एक पत्र प्रधानमंत्री को लिख रहा है। प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान के अनुसार अब तक लगभग 500 शिक्षक यह पत्र लिख चुके हैं।