काफी समय से विवादों में रहे उद्यान मंत्री गणेश जोशी के नए-नए कारनामे सामने आ रहे हैं। माननीय ने रातों-रात क्या-क्या गुल खिलाए हैं, यह मीडिया को पता है, लेकिन सरकार क्यों अनदेखी कर रही है।
विवादों में चल रहे उद्यान मंत्री गणेश जोशी के चमचों का एक और नया खुलासा सामने आया है।
जिला मुख्यालय रुद्रपुर से सटे गंगापुर रोड फुलसुंगी क्षेत्र में ऐसा एक मामला सामने आया है, जहाँ एक सुनियोजित साजिश के तहत एक हरा-भरा बाग रातोंरात उजाड़ दिया गया।
बिना अनुमति काट दिये आम और लीची के 78 पेड़
यह बाग खसरा संख्या 390 में दर्ज था, जो चन्द्रकांता सिंह पत्नी अमरनाथ सिंह के नाम पर दर्ज है। इस भूमि पर आम के 70 और लीची के 8 फलदार वृक्ष मौजूद थे। वर्षों से यह बाग हरियाली और उत्पादकता का प्रतीक बना हुआ था लेकिन अब यह मैदान में तब्दील हो चुका है। इस बाग को साफ करने के पीछे की मंशा साफ है, जमीन को कॉलोनी के रूप में विकसित करना और ज़मीन के हर टुकड़े से पैसा निकालना लेकिन सवाल यह है कि जब पेड़ काटने की अनुमति ही नहीं मिली थी तब यह सब हुआ कैसे?
सूत्रों के अनुसार, भू-माफिया ने उद्यान विभाग की मिलिभगत के चलते इस बाग को काटने की अनुमति मिली थी। नियमों के अनुसार एक समिति गठित कर स्थल का निरीक्षण कराया, लेकिन निरीक्षण में स्पष्ट हुआ कि सभी पेड़ स्वस्थ हैं, फल देने की स्थिति में हैं और किसी प्रकार की जनहानि का कारण नहीं बन रहे इसके आधार पर उद्यान विभाग ने अनुमति देने से इनकार कर दिया इसके बावजूद उक्त कॉलोनाइज़र ने न केवल सभी पेड़ों की छंटाई करवाई, बल्कि फिर योजनाबद्ध ढंग से पेड़ों को काटकर ज़मीन को समतल कर दिया।
हैरानी की बात यह है कि उद्यान विभाग को इस पूरे कृत्य की भनक तक नहीं लगी न ही विभाग की निगरानी टीम सक्रिय हुई और न ही जिला प्रशासन या विकास प्राधिकरण ने कोई संज्ञान लिया ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरे सरकारी तंत्र ने आंख मूंद रखी थी या जानबूझकर आंखें मूंदी गई थीं जब इस अवैध कटाई की जानकारी क्षेत्रवासियों को हुई तब उन्होंने खुद उद्यान विभाग को शिकायत भेजी जिसके बाद विभाग ने जांच की बात कही लेकिन अभी तक किसी भी स्तर पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। जबकि पेड़ों के कटान का यह मामला बेहद गंभीर है।
मामले में संदेह की सुई हाल ही में 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुए उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह की ओर घूम रही है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह साजिश उनकी मौन सहमति और विभागीय मिलीभगत से ही पूरी की गई पेड़ों की छंटाई से लेकर काटे जाने तक की पूरी प्रक्रिया चरणबद्ध और सधी हुई थी जिससे यह साफ होता है कि यह कोई अचानक हुई घटना नहीं बल्कि एक सोची-समझी कार्रवाई थी।
इस कटाई के बाद अब ज़मीन पर अवैध कॉलोनी काटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सरकारी नियमों को ठेंगा दिखाते हुए भू-माफिया प्लॉटिंग और बुकिंग की तैयारी में जुट गए हैं। दूसरी ओर उद्यान विभाग इस पूरे मामले में केवल जुर्माना वसूल कर खानापूर्ति करने की दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है, मानो 78 फलदार पेड़ों की हत्या सिर्फ एक आर्थिक हर्जाना भरकर माफ की जा सकती हो।
क्षेत्र के लोग लोग पूरी घटना से आक्रोशित है। उनका कहना है कि जब शासन-प्रशासन और विभाग ही आंख मूंद लें तो पर्यावरण संरक्षण जैसे शब्द केवल भाषणों की शोभा बनकर रह जाते हैं। एक हरे-भरे बाग का इस तरह से अवैध रूप से उजड़ना केवल पर्यावरण के साथ नहीं जनविश्वास के साथ भी एक विश्वासघात है।